हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
अपने आईना-ए-तमन्ना में
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
रात जब भीग के लहराती है
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
एक कम-सिन हसीन लड़की का