अब्र में छुप गया है आधा चाँद
अपने आईना-ए-तमन्ना में
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
इक ज़रा रसमसा के सोते में
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
चंद लम्हों को तेरे आने से
तितली कोई बे-तरह भटक कर
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
रात जब भीग के लहराती है
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
एक कम-सिन हसीन लड़की का