चंद लम्हों को तेरे आने से
एक कम-सिन हसीन लड़की का
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
इक ज़रा रसमसा के सोते में
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
रात जब भीग के लहराती है
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर