हाए ये तेरे हिज्र का आलम
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
तितली कोई बे-तरह भटक कर
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
एक कम-सिन हसीन लड़की का
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
चंद लम्हों को तेरे आने से