यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
अपने आईना-ए-तमन्ना में
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
एक कम-सिन हसीन लड़की का
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
रात जब भीग के लहराती है
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
तितली कोई बे-तरह भटक कर
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम