रात जब भीग के लहराती है
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
चंद लम्हों को तेरे आने से
एक कम-सिन हसीन लड़की का
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं