किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
एक कम-सिन हसीन लड़की का
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
इक ज़रा रसमसा के सोते में
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़