सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
रात जब भीग के लहराती है
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
चंद लम्हों को तेरे आने से
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
तितली कोई बे-तरह भटक कर
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर