सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
रात जब भीग के लहराती है
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
अपने आईना-ए-तमन्ना में
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
तितली कोई बे-तरह भटक कर
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम