हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
रात जब भीग के लहराती है
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
तितली कोई बे-तरह भटक कर
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम