अपने आईना-ए-तमन्ना में
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
एक कम-सिन हसीन लड़की का
चंद लम्हों को तेरे आने से
इक ज़रा रसमसा के सोते में
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
रात जब भीग के लहराती है
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में