अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
एक कम-सिन हसीन लड़की का
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
हाए ये तेरे हिज्र का आलम