अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
एक कम-सिन हसीन लड़की का
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
रात जब भीग के लहराती है
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
तितली कोई बे-तरह भटक कर
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर