यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
एक कम-सिन हसीन लड़की का
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
इक ज़रा रसमसा के सोते में
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या