तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
तितली कोई बे-तरह भटक कर
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
रात जब भीग के लहराती है
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या