इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
रात जब भीग के लहराती है
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
हाए ये तेरे हिज्र का आलम