आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
रात जब भीग के लहराती है
अपने आईना-ए-तमन्ना में
चंद लम्हों को तेरे आने से
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें