हाए ये तेरे हिज्र का आलम
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
रात जब भीग के लहराती है
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
तितली कोई बे-तरह भटक कर
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से