कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
रात जब भीग के लहराती है
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
अपने आईना-ए-तमन्ना में
एक कम-सिन हसीन लड़की का
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
तितली कोई बे-तरह भटक कर
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा