यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
रात जब भीग के लहराती है
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
एक कम-सिन हसीन लड़की का
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या