आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
अपने आईना-ए-तमन्ना में
एक कम-सिन हसीन लड़की का
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
रात जब भीग के लहराती है
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा