अब्र में छुप गया है आधा चाँद
रात जब भीग के लहराती है
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
चंद लम्हों को तेरे आने से
तितली कोई बे-तरह भटक कर
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा