ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
अपने आईना-ए-तमन्ना में
इक ज़रा रसमसा के सोते में
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा