सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
रात जब भीग के लहराती है
चंद लम्हों को तेरे आने से
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
एक कम-सिन हसीन लड़की का
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
अपने आईना-ए-तमन्ना में
इक ज़रा रसमसा के सोते में
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'