यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
तितली कोई बे-तरह भटक कर
एक कम-सिन हसीन लड़की का
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में