तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
इक ज़रा रसमसा के सोते में
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
तितली कोई बे-तरह भटक कर
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा