अब्र में छुप गया है आधा चाँद
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
तितली कोई बे-तरह भटक कर
अपने आईना-ए-तमन्ना में
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़