याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
एक कम-सिन हसीन लड़की का
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
अपने आईना-ए-तमन्ना में
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या