यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
चंद लम्हों को तेरे आने से
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
अपने आईना-ए-तमन्ना में
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से