तितली कोई बे-तरह भटक कर
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
रात जब भीग के लहराती है
इक ज़रा रसमसा के सोते में
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
चंद लम्हों को तेरे आने से
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
एक कम-सिन हसीन लड़की का