ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
इक ज़रा रसमसा के सोते में
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
तितली कोई बे-तरह भटक कर
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
हाए ये तेरे हिज्र का आलम