एक कम-सिन हसीन लड़की का
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
इक ज़रा रसमसा के सोते में
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
रात जब भीग के लहराती है
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें