तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
इक ज़रा रसमसा के सोते में
अपने आईना-ए-तमन्ना में
रात जब भीग के लहराती है
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
चंद लम्हों को तेरे आने से
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी