इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
एक कम-सिन हसीन लड़की का
इक ज़रा रसमसा के सोते में
तितली कोई बे-तरह भटक कर