तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
रात जब भीग के लहराती है
चंद लम्हों को तेरे आने से
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
अपने आईना-ए-तमन्ना में
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
एक कम-सिन हसीन लड़की का