हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
तितली कोई बे-तरह भटक कर
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
अपने आईना-ए-तमन्ना में
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा