कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
रात जब भीग के लहराती है
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
तितली कोई बे-तरह भटक कर
एक कम-सिन हसीन लड़की का