मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
तितली कोई बे-तरह भटक कर
रात जब भीग के लहराती है
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
अपने आईना-ए-तमन्ना में