दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
एक कम-सिन हसीन लड़की का
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
अपने आईना-ए-तमन्ना में
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
रात जब भीग के लहराती है