एक कम-सिन हसीन लड़की का
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
तितली कोई बे-तरह भटक कर
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा