कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
चंद लम्हों को तेरे आने से
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
रात जब भीग के लहराती है
तितली कोई बे-तरह भटक कर
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
अपने आईना-ए-तमन्ना में