एक कम-सिन हसीन लड़की का
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
इक ज़रा रसमसा के सोते में
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
अपने आईना-ए-तमन्ना में
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
रात जब भीग के लहराती है