कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
तितली कोई बे-तरह भटक कर
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
इक ज़रा रसमसा के सोते में
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से