यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
इक ज़रा रसमसा के सोते में
एक कम-सिन हसीन लड़की का
अपने आईना-ए-तमन्ना में
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम