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दिल्ली पे क़ुर्बान - इज़हार मलीहाबादी कविता - Darsaal

दिल्ली पे क़ुर्बान

बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

निशात-ए-जावेदाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

शमीम-ए-गुलसिताँ दिल्ली पे क़ुर्बां

ज़मीन-ओ-आसमाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

मिरा दिल मेरी जाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

यहाँ हर ख़ार सर्व-ओ-यासमन है

यहाँ हर जादा आग़ोश-ए-चमन है

यहाँ हर ज़र्रा सूरत की किरन है

नुजूम-ओ-कहकशाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

मिरा दिल मेरी जाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

महकती वादियाँ रंगीं नज़ारे

नज़ारों में मोहब्बत के इशारे

सुहानी सुब्ह जमुना के किनारे

ख़ुम-ए-आब-ए-रवाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

मिरा दिल मेरी जाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

वो ठंडी रात वो आरिज़ वो गेसू

फ़ज़ा में पुर-फ़िशाँ साँसों की ख़ुश्बू

नशीली करवटें मख़मूर पहलू

शराब-ए-अर्ग़वाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

मिरा दिल मेरी जाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

सलोने होंट और वादे सुहाने

निगह मा'सूम और कमसिन निशाने

महकते जिस्म ख़ुश्बू के ख़ज़ाने

चमन-ज़ारए-जिनाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

मिरा दिल मेरी जाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

मिरे अहद-ए-मोहब्बत की निशानी

सलोनी साँवली गुल-रंग धानी

यहाँ गुम हो गई मेरी जवानी

दिल-ए-कौन-ओ-मकाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

मिरा दिल मेरी जाँ दिल्ली पे क़ुर्बां

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