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सच कहो - इस्माइल मेरठी कविता - Darsaal

सच कहो

सच कहो सच कहो हमेशा सच

है भले-मानसों का पेशा सच

सच कहोगे तो तुम रहोगे अज़ीज़

सच तो ये है कि सच है अच्छी चीज़

सच कहोगे तो तुम रहोगे शाद

फ़िक्र से पाक रंज से आज़ाद

सच कहोगे तुम रहोगे दिलेर

जैसे डरता नहीं दिलावर शेर

सच से रहती है तक़्वियत दिल को

सहल करता है सख़्त मुश्किल को

सच है सारे मुआमलों की जान

सच से रहता है दिल को इत्मिनान

सच में राहत है और आसानी

सच से होती नहीं पशेमानी

सच है दुनिया में नेकियों की जड़

सच न हो तो जहान जाए उजड़

सच कहोगे तो दिल रहेगा साफ़

सच करा देगा सब क़ुसूर मुआफ़

सच से ज़िन्हार दर-गुज़र न करो

दिल में कुछ ख़ौफ़ और ख़तर न करो

जिस को सच बोलने की आदत है

वो बड़ा नेक बा-सआदत है

वही दाना है जो कि है सच्चा

इस में बुढ्ढा हो या कोई सच्चा

है बुरा झूट बोलने वाला

आप करता है अपना मुँह काला

फ़ाएदा उस को कुछ न देगा झूट

जाएगा एक रोज़ भांडा फूट

झूट की भूल कर न डालो ख़ू

झूट ज़िल्लत की बात है आख़-थू

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