नसीहत
करे दुश्मनी कोई तुम से अगर
जहाँ तक बने तुम करो दरगुज़र
करो तुम न हासिद की बातों पे ग़ौर
जले जो कोई उस को जलने दो और
अगर तुम से हो जाए सरज़द क़ुसूर
तो इक़रार ओ तौबा करो बिज़्ज़रुर
बदी की हो जिस ने तुम्हारे ख़िलाफ़
जो चाहे मुआफ़ी तो कर दो मुआफ़
नहीं, बल्कि तुम और एहसाँ करो
भलाई से उस को पशेमाँ करो
है शर्मिंदगी उस के दिल का इलाज
सज़ा और मलामत की क्या एहतियाज
भलाई करो तो करो बे-ग़रज़
ग़रज़ की भलाई तो है इक मरज़
जो मुहताज माँगे तो दो तुम उधार
रहो वापसी के न उम्मीद-वार
जो तुम को ख़ुदा ने दिया है तो दो
न ख़िस्सत करो इस में जो हो सो हो
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