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एक वक़्त में एक काम - इस्माइल मेरठी कविता - Darsaal

एक वक़्त में एक काम

है काम के वक़्त काम अच्छा

और खेल के वक़्त खेल ज़ेबा

जब काम का वक़्त हो करो काम

भूले से भी खेल का न लो नाम

हाँ खेल के वक़्त ख़ूब खेलो

कूदो फाँदो कि डंड पेलो

ख़ुश रहने का है यही तरीक़ा

हर बात का सीखिए सलीक़ा

हिम्मत को न हारियो ख़ुदा-रा

मत ढूँडियो ग़ैर का सहारा

अपनी हिम्मत से काम करना

मुश्किल हो तो चाहिए न डरना

जो कुछ हो सो अपने दम क़दम से

क्या काम है ग़ैर के करम से

मत छोड़ियो काम को अधूरा

बे-कार है जो हुआ न पूरा

हर वक़्त मैं सिर्फ़ एक ही काम

पा सकता है बेहतरी से अंजाम

जब काम में काम और छेड़ा

दोनों ही में पड़ गया बखेड़ा

जो वक़्त गुज़र गया अकारत

अफ़्सोस! हुआ ख़ज़ाना ग़ारत

है काम के वक़्त काम अच्छा

और खेल के वक़्त खेल ज़ेबा

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