फ़ितरत के मुताबिक़ अगर इंसाँ ले काम
हैवान तो हैवान जमादात हों राम
मिट्टी पानी हवा हरारत बिजली
दानिश-मंदों के हैं मुतीअ अहकाम
Rahat Indori
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चिड़िया के बच्चे
बरसात
हक़्क़ा कि बुलंद है मक़ाम-ए-अकबर
दर-अस्ल कहाँ है इख़्तिलाफ़-ए-अहवाल
कछवा और ख़रगोश
है इश्क़ से हुस्न की सफ़ाई ज़ाहिर
अक्सर ने है आख़िरत की खेती बोई
मक़्सूद है क़ैद-ए-जुस्तुजू से बाहर
मकशूफ़ हुआ कि दीद हैरानी है
अब क़ौम की जो रस्म है सो ऊल-जुलूल
करता हूँ सदा मैं अपनी शानें तब्दील
ऐ बे-ख़बरी की नींद सोने वालो