बंदा हूँ तो इक ख़ुदा बनाऊँ अपना
ख़ालिक़ हूँ तो इक जहाँ दिखाऊँ अपना
है बंदगी वहम और ख़ुदाई पिंदार
मैं वो हूँ कि ख़ुद पता न पाऊँ अपना
Allama Iqbal
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तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
मकशूफ़ हुआ कि दीद हैरानी है
हवा और सूरज का मुक़ाबला
इंकार न इक़रार न तस्दीक़ न ईजाब
अहवाल से कहा किसी ने ऐ नेक-शिआ'र
दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ
चौपाए की तरह तू किताबों से न लद
देखा तो कहीं नज़र न आया हरगिज़
होती नहीं फ़िक्र से कोई अफ़्ज़ाइश
वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर
साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या
बे-कार न वक़्त को गुज़ारो यारो